Read the book Princestan this is the untold story of how Jawaharlal Nehru, Lord Mountbatten and Sardar Patel made india | भारत-पाकिस्तान के अलावा तीसरा स्वतंत्र देश ‘प्रिंसिस्तान’ बनाने की थी साजिश, इस किताब ने किया खुलासा - NOFAA

Read the book Princestan this is the untold story of how Jawaharlal Nehru, Lord Mountbatten and Sardar Patel made india | भारत-पाकिस्तान के अलावा तीसरा स्वतंत्र देश ‘प्रिंसिस्तान’ बनाने की थी साजिश, इस किताब ने किया खुलासा

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डिजिटल डेस्क, दिल्ली। आजाद भारत बनाने के लिए हर नागरिक अपना-अपना योगदान दे रहा था। लेकिन, कुछ चेहरें ऐसे थे जो देश को तोड़ने की साजिश रच रहे थे और उनकी ये चाहत पूरी भी हुई जब भारत से टूटकर एक अलग राष्ट्र पाकिस्तान बना। भारत दो हिस्सों में बंट गया, लेकिन साजिशकर्ताओं का इससे मन नहीं भरा और वो तीसरा देश “प्रिंसिस्तान” बनाने की तैयारी में लग गए, जिसे भारत और पाकिस्तान से स्वतंत्र रखा जाना था। इस साजिश को जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और लॉर्ड माउंटबेटन ने नाकाम कर दिया था। इस पूरी घटना का खुलासा लेखक संदीप बामजई ने अपनी पुस्तक ‘प्रिंसिस्तान : हाउ नेहरू, पटेल एंड माउंटबेटन मेड इंडिया’ में किया है।

इस पुस्तक में बताया गया है कि, कैसे 565 रियासतों जिन्हें “प्रिंसिस्तान” का नाम दिया गया, को दो स्वतंत्र राज्यों भारत और पाकिस्तान  के दायरे से बाहर रखने की साजिश को जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल  और लॉर्ड माउंटबेटन ने नाकाम किया।
विचार यह था कि, “प्रिंसिस्तान” नामक एक तीसरा प्रभुत्व बनाया जाए जहां 565 रियासतें दो स्वतंत्र राज्यों के दायरे से बाहर रहेंगी और अंग्रेजों के सहयोग से  यह एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्थापित होगी।  इस तरह के विभाजनकारी योजना ने नव स्वतंत्र राष्ट्र को अस्थिर और कमजोर बना दिया था । यह जानना वाकई दिलचस्प है  कि, कैसे तीन व्यक्ति ने नव स्वतंत्र राष्ट्र भारत को बेलगाम करने की नापाक ब्रिटिश योजना के रास्ते में खड़े थे। जवाहरलाल नेहरू, लॉर्ड माउंटबेटन और सरदार पटेल ने हर मोड़ पर रियासतों के शासकों से लड़ा और उस धूर्त योजना को नाकाम किया था।   

भारत की आज़ादी के बाद “भारत बनने की कहानी” पर कई बेहतरीन पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इन्ही पुस्तकों की सूचि में संदीप बामजई की पुस्तक ‘प्रिंसिस्तान ‘ का नाम भी जुड़ गया है।  ‘प्रिंसिस्तान’ को अगर 247 पृष्ठों का ऐतिहासिक दस्तावेज़  कहा जाये, तो गलत नहीं होगा। संदीप बामजई हमें पुस्तक के माध्यम से विस्तार और बारीकी से बताते हैं कि कैसे “प्रिंसिस्तान” का गठन हुआ। यह एक गहन शोध और रागात्मक भाव से लिखी गयी पुस्तक है। वह विभिन्न स्रोतों – पत्रों, संस्मरणों, आत्मकथाओं, समाचार रिपोर्टों और  अपने व्यक्तिगत अनुभवों से वह इस पुरे वितान को हमारे समक्ष लाते  हैं।

ऑल इंडिया स्टेट्स कॉन्फ्रेंस का संगठन नेहरू की महत्वाकांक्षी योजना थी। नेहरू ने गांधी को साधिकार आग्रह किया और कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी रियासतें भारत संघ के साथ हों। नेहरू की परवरिश, उनकी विचार प्रक्रिया शुरू से ही साम्रज्य /राजशाही विरोधी थी। नेहरू कभी भी राजकुमारों को पसंद नहीं करते थे और उनका यह विचार उनके राजतंत्रीय विरोधी अवधारणा और फैबियन समाजवादी सोच से उपजा था। नेहरू एक संपूर्ण एकीकृत भारत की अवधारणा पर विश्वास करते थे, जिसमें प्रांत और रियासतें शामिल थीं।नेहरू के  सम्राज्यवाद  विरोधी  स्वभाव, पटेल की  चतुराई के और गांधीजी एक आकार रहित भारत का  विश्वास  जिसमें वह चाहते थे कि लोग सह-अस्तित्व में रहें। लेखक किताब में आख्यान को हवाला देते हुए बताते हैं ।  

दस्तावेज़ को पढ़ते और लिपिबद्ध करते समय लेखक संदीप बामज़ई का दृष्टिकोण और व्यवहारिकता दोनों में संतुलन है, जिसका प्रमाण इस पुस्तक में दृष्टिगत होता है। भारत को एक करने का अभूतपूर्व कार्य जिसमें हर नीति का प्रयोग किया गया, इस पुस्तक में दर्ज है जिसे पढ़ते हुए आपको इससे एक भावात्मक राग सा जुड़ाव लगेगा।

तत्कालीन रियासत भारत राष्ट्र में विलय के लिए सहज नहीं थे। आज़ाद भारत में शामिल होने के सबंध में रियासत के साथ कई संवाद हुए और अधिक अवसरों पर राजाओ ने अपने सवतंत्र अस्तित्वा के पक्ष में पर जीत हासिल की थी।  लार्ड माउंटबेटन ने तत्कालीन रियासत के राजाओ को बहुत स्पष्ट और कड़े शब्दों में कहा कि,15 अगस्त  1947 बाद कोई अन्य तरीका नहीं है ,अगर आप सोच रहे हैं कि आप छोटे – छोटे, रियासत का निर्माण करेंगे और जिसे ब्रिटिश हुकूमत समर्थन करेगी, जो कि असंभव है।  और ठीक यहीं “प्रिंसिस्तान” की अवधारणा का बीजारोपण होता है।

लेखक संदीप बामजई विस्तार से बताते हैं रियासत कभी भी स्वतंत्रता नहीं चाहते थे। इन रियासतों का एक चैंबर था और चैंबर ऑफ प्रिसेंस के चांसलर भोपाल के नवाब हमीद़ल्लाह खान थे। तत्कालीन राजाओं ने ने  काफी हद तक  खुद को हिंदुस्तान और पाकिस्तान के मशले से लंबे समय तक बाहर रहने में कामयाबी भी हासिल कर ली थी। परन्तु पंडित नेहरू, सरदार पटेल और लॉर्ड माउंटबेंटन  ने उनके इस विभाजक मंसूबों पर  पानी फेर दिया। भारत को  अस्थिर और कमजोर करने के मिशन में इन रियासतों का साथ अली जिन्ना, लॉर्ड वेवेल और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भरपूर  साथ दिया था।

आगे ,संदीप बामजई किताब में लिखते हैं: 
पटेल ने मेनन से पूछा कि क्या आप देख रहे हैं?
सरदार पटेल ने मेनन से यह भी पूछा, क्या माउंटबेटन एक टोकरी में सभी 565 सेब लाएंगे और उसे रख देंगे?
मेनन, पटेल के प्रश्न का सकारात्मक उत्तर देते  हैं ,और पटेल अंगूठे को ऊपर कर सहमति देते हैं। और इसी प्रकार भारत का निर्माण होता है। मेनन ने इन रियासतदारों को साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर अपनी ओर मिलाया।
यह  एक कहानी की तरह पाठक को 1947 के उस काल खण्ड में ले जाती है जहां यह सब घटित हो रहा था।
वीपी मेनन एक दृढ सोच  वाले नौकरशाह थे,जिन्होंने पहले माउंटबेटन के साथ काम किया था। उन्होंने ओडिशा से भावनगर तक लम्बी यात्रा की थी। मेनन शिमला जाते हैं, डिकी बर्ड योजना पर काम करते  हैं, नेहरू उस योजना की पुष्टि करते हैं, और अंततः माउंटबेटन उस योजना को मंजूरी देता है। आपको  पढ़ते हुए यह एहसास होगा कि, 565 टुकड़ों को एक सूत्र में पिरोने की ये कहानी  राजनीतिक पुस्तक की तरह एक खास वर्ग के लिए नहीं लिखी गई है।

लेखक ने वी पी  मेनन के योगदान शानदार वर्णन किया है। यह पुस्तक निश्चित रूप से एक खास वर्ग को आइना दिखने का भी काम करती है, जो पटेल और नेहरू के मध्य वैचारिक दीवार खड़ा कर रही है। 

संदीप बामज़ई ने अपने इस किताब के माध्यम से भारत के एक आजादी के तुरंत बाद के स्तिथि को कथात्मक इतिहास के रूप में प्रस्तुत करने  का एक शानदार काम किया है। साथ ही साथ भारतीय राष्ट्र-राज्य की सकंल्पना और निर्माण कथाओं को भी अपने अर्जित भाषा शिल्प और पत्रकारिता के विराट अनुभवों के माध्यम से हमारे समक्ष लाते हैं ।

वर्तमान समय में बहुत कम ही ऐसे सन्दर्भ पुस्तक लिखी जा रही है ,जैसा संदीप बमजई ने लिखा है। यह हमारे बुक शेल्व्स में रहने वाली अनिवार्य पुस्तक है। संदीप की यह उत्कृष्ट कृति को लम्बे समय तक याद किया जाएगा।

पुस्तक : प्रिंसिस्तान  : हाउ नेहरू, पटेल एंड माउंटबेटन मेड इंडिया  
लेखक : संदीप  बामजई
प्रकाशक: रूपा एंड को
भाषा: अंग्रेजी
(समीक्षक, आशुतोष कुमार ठाकुर – बैंगलोर में रहते हैं। पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट  तथा  कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं।)

 
 

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