बारिश का मौसम आते ही मच्छरों और उनसे होने वाली बीमारियों से बचना बेहद मुश्किल हो जाता है। इस मौसम में यह बीमारियां माहमारी की तरह फैलना शुरू हो जाती हैं। डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया इनमें प्रमुख हैं। लोग अक्सर इसे पहचानने में ही गलती कर जाते हैं और डेंगू और चिकनगुनिया का इलाज न करके सामान्य बुखार या मलेरिया का इलाज करने लगते हैं।
डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया यह तीनों ही बीमारियों में लापरवाही करना बच्चों में जान जोखिम में डालने जैसा है। इस तरह की लापरवाही मरीज की मौत का कारण बन जाती है।
चिकनगुनिया, डेंगू और मलेरिया में क्या अंतर होता है?
डेंगू में बुखार के साथ हाथ-पैर में दर्द रहता है। बच्चों को भूख कम लगने लगती है। जी मचलाना और उल्टी करने की टेंडेंसी भी हो सकती है। डेंगू का बुखार बहुत तेज होता है और ठंड के साथ बुखार आता है। डेंगू के बुखार का एक खास लक्षण होता है सिर में और आंखों में तेज दर्द। कभी आंख और नाक से खून आने के लक्षण भी दिख सकते हैं। स्किन में लाल धब्बे पड़ना भी कभी-कभी देखा गया है। डेंगू की सबसे अहम पहचान होती है कि मरीज को बुखार के साथ कमजोरी लगने लगती है क्योंकि उसके प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं।
वहीं, चिकनगुनिया के लक्षण भी डेंगू से मिलते जुलते हैं लेकिन इसमें प्लेटलेट्स काउंट कम नहीं होते हैं इसलिए मरीज को डेंगू की तुलना में कमजोरी कम लगती है। तेज बुखार के साथ जोड़ों में दर्द चिकनगुनिया का सामान्य लक्षण होता है। जब भी बुखार आता है तो तेज सरदर्द और चक्कर आने जैसे लक्षण भी देखे जा सकते हैं। चिकनगुनिया में शरीर में जकड़न की समस्या भी रहती है। चिकनगुनिया का जो सबसे अहम लक्षण माना जाता है शरीर में चकत्ते या दाने पड़ना होता है जिनका रंग हल्का लाल रंग का होता है।
मलेरिया होने पर रोगी को सर्दी लगने लगती है और शरीर कांपने लगता है। इसके अन्य लक्षणों में सर्दी के साथ प्यास लगना, उल्टी होना, हाथ पैरों में ठंड लगना और बेचैनी होना आदि है। इस बीमारी में कब्ज़, घबराहट और बेचैनी आदि होने लगती है।
डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया से अपने बच्चों को कैसे बचाएँ ?
कहीं भी खुले में पानी रुकने या जमा न होने दें। डेंगू और चिकनगुनिया का मच्छर साफ पानी में और मलेरिया का गंदे पानी में पैदा होता है। पानी को पूरी तरह ढककर रखें। कूलर, बाथरूम, किचन आदि में जहां पानी रुका रहता है, वहां दिन में एक बार मच्छर भगाने का तेल स्प्रे करें।
इन बीमारियों से पीड़ित बच्चों को कैसे रखें ?
घर में किसी को बुखार हुआ है तो उसे मच्छरदानी में रखें, वरना मच्छर मरीज को काटकर घर भर में दूसरे लोगों को भी फैलाएगा। मरीज को बुखार होने के 7 दिन तक वायरस शरीर में बरकरार रहता है। अगर मरीज को वायरल है तो उसकी चीजें इस्तेमाल न करें और उसे कहें कि छींकते या खांसते हुए मुंह और नाक पर नैपकिन रखे।
कब तक घर पर मैनेज करें?
अगर 102 डिग्री तक है और कोई और खतरनाक लक्षण (रैशेज, बेचैनी, चक्कर, लगातार उलटी, खून आना आदि) नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। मरीज के माथे पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए।
– मरीज को हर 6 घंटे में पैरासेटामॉल (Paracetamol) की 500 या 650 एमजी की एक गोली दे सकते हैं। 24 घंटे में 3-4 गोली तक ले सकते हैं। यह मार्केट में क्रोसिन (Crocin), कालपोल (Calpol) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। बच्चों को हर चार घंटे में 1 मिली प्रति किलो वजन के अनुसार इसकी लिक्विड दवा दे सकते हैं।
– मरीज को एसी में रख सकते हैं, तो बहुत अच्छा है, नहीं तो पंखे में रखें। कूलर में भी रख सकते हैं लेकिन कूलर की सफाई का पूरा ध्यान रखें।
– दिन में तीन-चार बार टेंप्रेचर लें और तीन-चार बार ब्लड प्रेशर भी लें। दोनों की रीडिंग डायरी में नोट करते रहें ताकि डॉक्टर को जाकर बता सकें। बीपी में अगर 20 से ज्यादा का उतार-चढ़ाव दिखे तो डॉक्टर के पास जाएं।
– मरीज को पूरा आराम करने दें। आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है।
कब डॉक्टर के पास जाएं
– दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं। अगर मरीज को खतरनाक लक्षण हों जैसे कि 102 डिग्री फॉर. से ज्यादा बुखार, आंखों में तेज दर्द, पेट में तेज दर्द, चक्कर आना, बार-बार उलटी आना, नाक, मसूढ़ों, कान या शौच में खून आना, बेहद कमजोरी महसूस करना या बेहोशी आना, तो भी फौरन डॉक्टर के पास ले जाएं।
– इसके अलावा अगर मरीज की उम्र 5 साल से कम हो या फिर 60 साल से ज्यादा हो और उसे डायबीटीज, ब्लड प्रेशर, किडनी या लिवर की समस्या हो तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। किडनी के किडनी के मरीज अगर अपनी मर्जी से पेनकिलर लेंगे तो नुकसान हो सकता है। इसी तरह हार्ट पेशंट को भी डॉक्टर की सलाह से एस्प्रिन 2-4 दिन के लिए बंद कर देनी चाहिए। बेहतर है कि पहले से कोई बीमारी (डायबीटीज, लिवर, किडनी, दिल की बीमारी आदि) होने पर बुखार को हल्के में ना लें और डॉक्टर के पास फौरन जाएं। डॉक्टर को पहले से चल रहीं कुछ दवाएं फौरी तौर पर बंद करनी हो सकती हैं।
कब फौरन एडमिट कराना जरूरी ?
अगर मरीज का ब्लडप्रेशर या पल्स रेट गिर गया हो, शरीर ठंडा हो रहा हो, वह कुछ खा-पी नहीं पा रहा हो, बिस्तर से उठ न पा रहा हो, लगातार उलटी हो, बहुत बेचैनी हो या सांस लेने में दिक्कत हो, पेशाब न कर पा रहा हो, नाक या मसूढ़ों से ब्लीडिंग शुरू हो जाए या प्लेटलेट्स 50 हजार या इससे नीचे हों, दिमागी हालत गड़बड़ लगे तो एडमिट कराना जरूरी। प्लेटलेट्स 1 लाख तक हों तो दिन में एक बार काउंट चेक करा लें। 60 हजार तक पहुंच जाएं तो दिन में दो बार चेक करा लें। इससे कम होने पर एडमिट कराना जरूरी।
बच्चों में बुखार में कॉमन गलतियां ?
1. बुखार है तो लोग खुद या केमिस्ट से पूछकर कोई भी दवा ले लेते हैं। यह खतरनाक साबित होता है। बुखार में एस्प्रिन (Aspirin) बिल्कुल न लें। यह मार्केट में इकोस्प्रिन (Ecosprin), डिस्प्रिन (Disprin) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। ब्रूफेन (Brufen), कॉम्बिफ्लेम (Combiflam) आदि पेनकिलर से भी परहेज करें क्योंकि अगर डेंगू है तो इन दवाओं से प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है। किसी भी तरह के बुखार में सबसे सेफ पैरासेटामॉल (Paracetamol) जैसे कि क्रोसिन आदि लेना है।
2. बुखार में लोग खुद ऐंटी-बायोटिक लेने लगते हैं, जबकि टायफायड के अलावा आमतौर पर दूसरे बुखार में ऐंटी-बायोटिक की जरूरत नहीं होती। ज्यादा ऐंटी-बायोटिक लेने से शरीर इसके प्रति इम्यून हो जाता है और जरूरत पड़ने पर ये असर नहीं करतीं। इनसे शरीर के गुड बैक्टीरिया भी मारे जाते हैं।
3. कई बार परिजन मरीज से खुद को चादर से ढककर रखने को कहते हैं ताकि पसीना आकर बुखार उतर जाए। इससे शरीर का तापमान बढ़ता है। इसके बजाय मरीज को खुली और ताजा हवा लगने दें। एसी, कूलर और पंखे में रखें।
कृपया आप निम्नलिखित सावधानी बरतें:बच्चे को बहुत से पौष्टिक आहार खिलाएंबुखार उतारने के लिए माथे पर गीला कपड़ा रखेंबच्चे को बहुत सारे तरल पदार्थ पिलाएंपपीते का रस मदद करने के लिए जाना जाता है, आप उसकी खुराक के बारे में अपने डॉक्टर से परामर्श कर सकते हैंआप निर्जलीकरण को रोकने के लिए बच्चे को इलेक्ट्रोलाइट / ओआरएस पाउडर पिला सकते हैंआपके बच्चे को आराम करना ज़रूरी है उससे टीवी देखने दें, आय -पैड़ से खेलने दें और थकावट से बचेंबच्चे को कहानियाँ या गाना सुनाकर बहलायेंबोर्ड गेम खेलना बच्चे को खुश और व्यस्त रखने का एक और अच्छा तरीका हैबच्चे के सोने के कमरे में मच्छर विकर्षक/रेपेलेंट चालू रखें
Leave a Comment