ओंकार त्रिपाठी कृत गीत गोदावरी का लोकार्पण सम्पन्न हुआ
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ओंकार त्रिपाठी कृत गीत गोदावरी का लोकार्पण सम्पन्न हुआ

ओंकार त्रिपाठी कृत गीत गोदावरी का लोकार्पण सम्पन्न हुआ
ओंकार त्रिपाठी कृत गीत गोदावरी का लोकार्पण सम्पन्न हुआ
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Written by Roja Yadav

नोएडा: सेक्टर 126 के त्रिवेणी सभागार में हुआ आयोजन साहित्य के क्षेत्र में बहुत तेजी से उभर रही संस्था साहित्य नव सृजन के तत्वावधान में ओंकार त्रिपाठी द्वारा रचित पुस्तक गीत गोदावरी का लोकार्पण समारोह दिनांक 26 फरवरी 2023 को नोएडा सेक्टर 126 स्थित एचसीएल, किरण नादर म्यूजियम ऑफ आर्ट के त्रिवेणी सभागार में संपन्न हुआ। इस लोकार्पण समारोह में देश के ख्यातिलब्ध, प्रतिष्ठित साहित्यकार,और ग़ज़लकार शामिल हुए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राज नारायण शुक्ल ने की। कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध गीतकार डॉक्टर जय सिंह आर्य मुख्य अतिथि के रूप में विद्यमान रहे। वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष अग्निहोत्री और वरिष्ठ साहित्यकार मीना जैन कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रहे। विद्वान मनीषी डॉ जय शंकर शुक्ल समीक्षक के रूप में मंच पर उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का संचालन संस्था की संस्थापिका और महासचिव अनुपमा पांडे भारतीय ने किया

कार्यक्रम का संचालन संस्था की संस्थापिका और महासचिव अनुपमा पांडे भारतीय ने किया।समीक्षक डॉ जयशंकर शुक्ल ने गीत गोदावरी को एक कालजयी साहित्यिक रचना बताया और उनके निर्बाध समीक्षात्मक विश्लेषण ने सभी साहित्यकारों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि शब्द ब्रह्म होते है और ओंकार त्रिपाठी ने गीत गोदावरी में शब्दों को साधा है। वर्तमान लिखे जा रहे साहित्यिक गीतों में गीत गोदावरी मील का एक नया पत्थर स्थापित करेगी।वरिष्ठ पत्रकार और कार्यकम के विशिष्ट अतिथि आशुतोष अग्निहोत्री ने गीत गोदावरी को सार्थक जीवनमूल्यों से जुड़ी हुई कृति बताते हुए गीतकार ओंकार त्रिपाठी को श्रेष्ठ साधक बताया। उपस्थित साहित्यकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जो कविता लिखना सीख रहे हैं और जो कविता लिख रहे हैं उन्हें एक बार गीत गोदावरी अवश्य पढ़ना चाहिए। उन्होंने संकलन के उद्देश्य को प्रमुखता से उद्भाषित करते हुए गीत गोदावरी से एक गीत पढ़ा

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एक गीत भी पढ़ा

फाग में मन विहग सब विलासी हुए।
भाव सारे हृदय के प्रवासी हुए।
सांझ ने जो अधर पर अधर धर दिया,
शब्द मथुरा हुए गीत काशी हुए।

उन्होंने ‘सांझ ने जो अधर पर अधर धर दिया’ को सर्वथा नवीन प्रयोग बताते हुए कवि की कल्पना की उड़ान को रेखांकित किया और बताया कि गोधूली बेला में आकाश में जो लालिमा दिखती है उसमें भी कवि प्रेम तत्व को स्थापित करता है।विशिष्ट अतिथि श्रीमती मीना जैन ने गीत गोदावरी को भाषा, भाव और शिल्प की दृष्टि से एक श्रेष्ठ साहित्यिक कृति बताई और कहां कि आजकल इस तरह का लेखन बहुत कम मिलता है।गीत गोदावरी की भाषा और शिल्प विधान को लेकर वरिष्ठ साहित्यकार विनय विक्रम सिंह ने कि कवि ने अपनी रचनाओं में चित्र भाषा का प्रयोग किया है जो अत्यंत दुर्लभ कार्य है और काव्य के लिए सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है। उन्होंने गीत गोदावरी में प्रयुक्त बिंबों प्रतीकों को नवगीत के चिंतन से जोड़कर परंपरागत छांदस में नवीन शिल्प की स्थापना बताई। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ राज नारायण शुक्ल ने गीत गोदावरी में गोदावरी शब्द के प्रयोग को क्षेत्रीयता और संकीर्णता से सीमा से ऊपर उठ राष्ट्रीय चिंतन से जोड़कर देखा।

संस्था के अध्यक्ष और पुस्तक के रचयिता ओंकार त्रिपाठी ने बताया कि गीत गोदावरी में एक ही तरह के गीतों को रखे जाने का उद्देश्य है। आज भौतिकता का युग है। लोग अंधी दौड़ में शामिल हैं। यंत्र के इस युग में मनुष्य भी यंत्रवत हो गया है। यंत्र में संवेदना नहीं होती, अब मनुष्य में भी नहीं रह गई है। हर व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। वह अनजाने में अकेला होता जा रहा है। फिर भी अकेलेपन की इस टूटन घुटन में भौतिकता का सुकून है। वह प्रेम करता है, पर धन से। धन की तुलना में वह अपने तन को भी गौड़ मानने लगा है। वह स्वयं से भी प्रेम नहीं कर पा रहा है, किसी और से क्या करेगा। वह शिक्षित है, भौतिक रूप से संपन्न है, पर मानवता के सारे मापदंड धर्म, नैतिकता, सभ्यता उसे बेमानी से लगने लगे हैं। कहाँ खो गया है मनुष्य के प्रति प्रेम, परिवार के प्रति प्रेम, देश के प्रति प्रेम। मनुष्य चांद पर पहुंचा, मंगल पर पहुंचा, बड़ा विकास किया। पर प्रेम घट गया, घटता ही चला गया, अब भी घट रहा है। इसमें कोई नया आविष्कार नहीं हुआ। इस संबंध में कहा जाए तो हम दिवालिया हो गए। आज निष्ठायें व्यक्तिवादी हो गई हैं। सामाजिक मूल्य तिरोहित हो रहे हैं। समाचार पत्र संघर्ष, हिंसा, विवाद, मतभेद से भरे हैं। जीवन मूल्य पराजित हो रहे हैं, संस्कार संस्कृति का क्षरण हो रहा है और मानवता शर्मसार हो रही है। संसद से सड़क तक एक ही स्थिति है। इस घुटन, चिल्लाहट, हत्या और धार्मिक उन्माद के परिवेश में हर किसी के पास आंख है पर वह स्वार्थ की परिधि से बाहर नहीं देख पा रहा है। शायद देखना ही नहीं चाहता। वह भूल गया है कि प्रेम ही जीवन का मूल है। प्रेम के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं। हर कोई इसे पाना तो चाहता है, पर सिर्फ दूसरों से। स्वयं कुछ नहीं देना चाहता। इसी संवेदना, अपनेपन, प्यार की तलाश सबको है, आपको भी है। इसी मानवीय प्यार की तलाश मुझे भी है, गीत गोदावरी के इन गीतों में और यही उद्देश्य है गीत गोदावरी में जीवन और प्रेम से जुड़े हुए गीतों के संकलन का।

कार्यक्रम का शुभारंभ गीत गोदावरी में लिखित वाणी वंदना से हुआ जिसे स्वर दिया प्रतिष्ठित कवयित्री डॉ. ममता वार्ष्णेय ने। पूजा श्रीवास्तव ने गीत गोदावरी का प्रथम गीत ‘तुम प्रसव की वेदना सहते रहो, इस प्रसव में जन्म लेगा गीत कोई।’ अपनी जादुई में पढ़ा तो पूरा सदन तालियों से गूंज गया।
संचालिका अनुपमा पांडेय भारतीय ने गीत गोदावरी से समर्पण की पराकाष्ठा पर रचित गीत ‘फिर भी तुमको रही शिकायत’ को पढ़ा:

मैं तुम्हें रच गया कि जैसे मेहंदी रची हाथों में।
जैसे मौसम बस जाता है तरुवर के नवपातों में।
मैं रुनझुन पायल की बनकर साथ तुम्हारे रहता हूं।
जो कुछ तुम मुझसे कहते हो वही गीत में कहता हूं।
फिर भी तुमको रही शिकायत…..

इस आयोजन को गरिमा प्रदान किया वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति ने, जिसमें बाबा कानपुरी डॉ. हरिदत्त गौतम, जयराम शर्मा, संजय जैन, सरिता जैन, वंदना कुमार, आलोक यादव, आलोक अविरल, डॉ नेहा इलाहाबादी, सुनीता पुनिया, अवधेश निर्झर, राजकुमार प्रतापगढ़ी और पुष्पलता बजाज, सोनिया अश्क सोनम, तूलिका सेठ आदि प्रमुख हैं। सभी साहित्यकारों सहित काशी प्रसाद तिवारी, इंद्रजीत शर्मा, राजीव मिश्र ने ओंकार त्रिपाठी को उनके इस श्रेष्ठ साहित्यिक संकलन के लिए बधाई दी।कार्यक्रम को सफल बनाने में साहित्य नवसृजन के कार्यकारिणी सदस्य डॉ. बीडी जोशी डॉ. यशपाल सिंह चौहान, बृजभूषण नेहा शर्मा प्रेरणा सिंह संध्या सेठ और गीतांजलि जादौन की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
सभी। सहभागी साहित्यकारों को अंगवस्त्र, लेखनी और सम्मान पत्र देकर अलंकृत किया गया। वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम माटिया के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

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